गोलगप्पे खाने का है चाव बड़ा पर जल्दी खाने में है फ़िक्र बहुत खड़ा हूँ क़तार में अपने मौक़े के इंतज़ार में पर इस बार तय कर लिया है खाऊँगा अगला निवाला पूरे इत्मीनान से
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Udta hoon uchayion mein
हाँ नज़र आईवो ज़मीनउड़ते आसमान सेउन बादलों सेसाफ़ साफ़, सब कुछ थोड़ी पहचानीथोड़ी अजनबी सी लगीक्या रखा था नामकिस नाम से थी पहचानहाँ, ऐसा ही था कुछ ज़ुबान पे आते आते वो रह गयाजब पास पहुँचेंगे तो शायदयाद आएगाहर एक रस्ता, हर एक मंज़िलऔर वो सब कुछ फिर सोचेंगेउस ज़मीन पर रखें पाओंकी फिर सेContinue reading “Udta hoon uchayion mein”
The wet grass and the feet of sun
गीले घास पर पड़े जब नंगे पैर लगा जैसे धरती से जुड़ गया हूँ ओस की ठंडक जैसे मुझमें घुलने लगी भीनी भीनी सी सुबह की धूप भी आसमानों से जैसे उसी वक़्त आ पहुँची उसकी गर्माहट कुछ नया एहसास लेके आयी है खून के सात घुल कर दिलों की धड़कन और साँसों में समायीContinue reading “The wet grass and the feet of sun”
The sky, raindrop and flower
हूँ अलग है मुझे रिझाना है सृष्टि को आगे बढ़ाना है रंग अलगसब पसंद करते हैं शायद इसीलिए मुझे तोड़ लेते हैं दिखता हूँ,क्योंकि अलग हूँअगर वो हरा ना होता तो मैं लाल, कैसे होता मेरा लाल रंग वो हरा, वो नीला,सावन की बारिश में है सब कुछ सबसे मिला
I am your drop
एक दोस्त मिला है अपने जैसा उससे जुड़ा हूँ शायद बस रंग देखा हैजिससे जुड़ा हूँ पर जिसका अंश हूँ जिससे उगा हूँ उसी से जुदा हूँ
Morning Chai
ये चाय की प्याली समेटे है अपने में पूरी सुबह वो सुबह की ताजगीवो सौंधी सी महक और वो अपना ज़ायक़ा और उसमें घुली यादेंहै सुबह खूबसूरत जैसे ये चाय की प्याली
Ye rumani Mausam
है रास्ता धुंधला बूँदों से है मैला हूँ में वक़्त का मुसाफ़िर है हर लम्हा अकेला बादलों से मिलने है लहरों ने ली छलांग कह रही है चिल्ला चिल्ला के ये पवन आने वाला है तूफ़ान है दोस्त मेरा, ये मौसम है ये ऋत, जानी पहचानी है कुछ मेरे ही जैसा थोड़ा संजीदा, थोड़ा रूमानी
House of Wood
पेड़ के तने पर है एक काठ का घर है घर जैसा पर अपना नहीं कुछ तिनकों से सजाना होगा है सुंदर पर अभी अपना नहीं मोहब्बत से रंगना होगा ख़्वाहिशों को सच बनाना होगा तब होगा सच, अपना कल सिर्फ़ रहेगा एक सपना नहीं नये पंख उड़ेंगे अपना आसमान ढूँढेंगे होगी नई शुरुआत उनContinue reading “House of Wood”
Dhuan
है धुआँये जहांउड़ता हुआबहता हवाओं मेंफिर मिलता हैइन फ़िज़ाओं में कहाँउस आग से निकलाउस आग में दफ़नतू पहले था कहाँऔर कल होगा कहाँना तुझे खबरना कोई ग़ुमाये जहांहै बस धुआँ
Kai saal guzar gaye
उसी मंदिर की घास पर बैठे,नंगे पाओं।सर झुकाए इबादत मेंकई साल गुज़र गए । छोटे पाओं बड़े हो गयेदिल मगर सिकुड़ गये।दिल खोल के हंसेकई साल गुज़र गये । फ़र्श साफ़ सुथरा हैशायद पहले से महँगा।नंगे पाओं चलेकई साल गुज़र गये । है रास्ता वहीकदम चले सोच समझ केबेख़ौफ़ दौड़ेकई साल गुज़र गये । हैContinue reading “Kai saal guzar gaye”
