
आज अकेला हुं
सुबह से वेला हूं
दुनिया को बचाने
अपने घर पे सोयेला हूं
भ्रमण कर आज
घर वापस आया हूं
कश्मीर से कन्याकुमारी का सफर
वास्तव में कर आया हूं
इंसान को ६ फीट दूर से देखा तो
थोड़ा डरा हुआ पाया है
हर आंखों में शक और कौफ का साया
भरपूर नजर आया है
इस नासूर वायरस
का वास्ता है
डर जातें हैं सब
जब कोई खांसता है
इन काले बादलों में मैंने
छिपे सिल्वर लाइनिंग को भी देखा है
भागते लम्हों को आज
चलते हुए देखा है
schedule wali डेयरी को दिया धोका
और टाइम को दिया रोका
मिला है थोड़ा सोचने का मौका
और कुछ नज़रिए का नया झरोखा
आज अकेला हुं
सुबह से वेला हूं
दुनिया को बचाने के चक्कर में
अपने आप से आज मिलेला हूं