ये ख़ाली रात
इंतज़ार से भर गई
जब समेटने लगे
तो मोहब्बत के सिवा कुछ ना मिला
नींद को लेके कहीं दूर चलीं हैं,
कुछ फ़िक्र की झुर्रियाँ
और जब मुड के देखा तो
रुकी हुई सुइयों के सिवा कुछ ना मिला
कदम बड़े हिसाब से उठे
लहरों से बच कर ज़िंदगी चली
पाओं के निशान पर जो इतराना चाहा
लहरों के सिवा, और कुछ ना मिला
बड़ी रफ़्तार रही होगी कदमों की
सबसे आगे जो निकल गये हैं
अकेले बैठे जब जश्न का समा बनाया तो
बिखरे हुए रिश्तों के सिवा और कुछ ना मिला
अब सुबह होने को है
अब नज़र खुली है, अब जाग गया हूँ
आँख मल कर, ज़िंदगी को देखा तो
मोहब्बत के सिवा और कुछ ना मिला