
एक अंधेरा भी है
जो रोशन बहुत है
एक खामोशी है
जो कहानी कहे जा रही है
मेरे साथ मेरा साया था
रात हुई तो खो गया है शायद
कल सुबह सुबह मिलेंगे उससे
अभी अकेले चल पड़ा हूँ
साथ साथ अंधेरा भी चल पड़ा है
और वो बातूनी खामोशी भी
पूछे बिग़ैर अपने अकेले क़ाफ़िले में
शामिल हो गया है
बातों बातों में
वक्त का पता ना चला
शायद मेरे साये के साथ
रुक गया था वहीं
अब जब सुबह हुई
तो दोनो, साथ मिलने आए हैं
दिन भर की दौड़ का
एहसास साथ लाये हैं
मैंने अपने रात के साथियों से पूछा
मेरे साथ चलोगे
पर वो वहीं खड़े रहे
मेरे सुकून के साथ
अंधेरे और खामोशी को
फिर मिलने का वादा किया
और घड़ी की सूयियों के साथ
मैंने अपने आप को खो दिया
शाम होने को है
इंतज़ार करते होंगे वो मेरा
उस मोड़ पे जहां छोड़ा था
पर में खो गया हूँ
वो मोड़ ही नहीं नज़र आता
जहां छोड़ा था अपने सुकून को
कई दिनों से ढूँढ रहा हूँ
शायद इसी लिए दौड़ रहा हूँ
एक बार को यू होगा,
थोड़ा सा सुकून होगा
ना दिलमे कसक होगी,
ना सर पे जूनून होगा
वो मोड़ यहीं कहीं
अंतर्मन में छिपा होगा ✨✨
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🙏🙏🙏
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चलो आओ ढूँढें 👌🏻👍🏻😊
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