Meri parchai dhoondhta hoon inme

उन ऊँचाइयों से देखा है
ज़िंदगी को उड़ते हुए
हवाओं का रुख़ जिस तरफ़ था
उसी रुख़ बहते हुए

सूरज को ढलते देखा है
डूबते क्षितिज को रंगते हुए
जैसा रंग खुद का था
उसी रंग में घुलते हुए

पानी को बहते देखा है
ठहरे पथरों पर छलाँगे भरते हुए
जिस तरफ़ उसका अंत था
उसी समंदर की तरफ़ मदमस्त बहते हुए

रोशनी को खिड़कियों से आते देखा है
गरम और नरम बाँहें लिए
मलमल अंधेरे पर धूल की सीडी रख
चुपचाप अंधेरे कमरे में घुसते हुए

थोड़ा रंग, थोड़ी उड़ान
रोशनी और बहाव को अपनी मुट्ठी में भर
इन सब में अपने आप को देखा है
गुजरी है ज़िंदगी, इनमें अपनी परछाई ढूँढते हुए

Published by Echoes of the soul

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