ऐसा कौनसा ख़्वाब है
जो सच्चा ना लगा
ऐसा कौनसा मौक़ा है
जो मुमकिन ना लगा
पर सचाई और ख़्वाब में शायद
नींद खुलने का फ़रक है
नींद खुली और आँखें मलि
आँखों के मैल के साथ
सारे ख़्वाब भी धूल गए
दिन की भाग दौड़ में
वो मौक़ा भी खो गया
हक़ीक़त बनने का हुनर
हर ख़्वाब में था
मौक़े को लपक के
पकड़ने का हुनर
हर बेख़ौफ़ छलाँग में था
पर हर कमजोर मुट्टी ने
मौक़े की फिसलती रेत को
फ़िज़ूल ही गवा डाला है
हर सहमी छलांग ने
मासूम ख़्वाबों को
जन्म से पहले ही मार डाला है
आज फिर नींद खुली है
एक ख़्वाब नया संजोया है
हौसलों की खाद से
और कोशिशों के पानी से
मन की मीठी को
इस बार खूब सींचा है
दूर रोशनी
नज़र आने लगी है
आँखें उस लक्ष्य से
रूबरू होने लगी है
ख़्वाबों का क़ाफ़िला
हक़ीक़त की और चल पड़ा है
आपके ख़याल सुनना चाहूँगा 😊
जागने की ख्वाहिश है
ख्वाबों का हौंसला है ।।
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Bilkul 🙏🙏
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