Mera dost Andhera

रात आयी तो
अंधेरा भी साथ आया है
दिन के उजाले में
कहाँ उससे मिलना हो पाया है

दिन के उजाले में
रोशनी के पीछे
शर्मिला सा, सहमा सा
छुपा रहता है शायद

दिन की तपती धूप से राहत की
चादर लाया है अंधेरा
दोस्तों से मिल बैठने का
माहौल भी लाया है ये अंधेरा

चाँद को साथ लिए
कुछ रोशनी भी लाया है
टिमटिमाते तारों से
हर पल को सजाया है

उजाला भी दोस्त है उसका
जुड़वा भाई जो ठहरा
मिलते रहते हैं वो दोनो
खूबसूरत क्षितिज पर सुबह शाम

हर जगह साथ हैं
हर पल मौजूद हैं
एक होने में है
एक खोने में है

जब मिला उस अंधेरे से
अपना सा उसे पाया
बड़ी ग़लत फ़हमी थी पहले
बात हुई तो सच साफ़ नज़र आया

कुछ मेरी तरह है वो
कभी संजीदा, कभी सरल
मेरा दोस्त है अंधेरा
मेरा साया है अंधेरा

Published by Echoes of the soul

I am a dreamer I weave tales in my mind I am connected to you through these words And through this screen across the virtual world

6 thoughts on “Mera dost Andhera

  1. Wow!!! I never thought that u can think abt darkness this way…beautiful imagination * well penned too….👌👌👌👌

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