
रात आयी तो
अंधेरा भी साथ आया है
दिन के उजाले में
कहाँ उससे मिलना हो पाया है
दिन के उजाले में
रोशनी के पीछे
शर्मिला सा, सहमा सा
छुपा रहता है शायद
दिन की तपती धूप से राहत की
चादर लाया है अंधेरा
दोस्तों से मिल बैठने का
माहौल भी लाया है ये अंधेरा
चाँद को साथ लिए
कुछ रोशनी भी लाया है
टिमटिमाते तारों से
हर पल को सजाया है
उजाला भी दोस्त है उसका
जुड़वा भाई जो ठहरा
मिलते रहते हैं वो दोनो
खूबसूरत क्षितिज पर सुबह शाम
हर जगह साथ हैं
हर पल मौजूद हैं
एक होने में है
एक खोने में है
जब मिला उस अंधेरे से
अपना सा उसे पाया
बड़ी ग़लत फ़हमी थी पहले
बात हुई तो सच साफ़ नज़र आया
कुछ मेरी तरह है वो
कभी संजीदा, कभी सरल
मेरा दोस्त है अंधेरा
मेरा साया है अंधेरा
Wow!!! I never thought that u can think abt darkness this way…beautiful imagination * well penned too….👌👌👌👌
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🙏🙏
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Wah!! Khoobsurat soch……aur kya bakhoobi abhivyakht kiya hai !!
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🙏🙏
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Satish…you two resemble also, just realised😄…dono SHYAM se😘
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😊🤣
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