The night spoke

रात की बात 

मुझसे हुई 

खामोश रहे 

कुछ लम्हे दोनों 

फिर लंबी बात हुई 

डर नहीं लगता, क्या तुमको?

उसने पूछा, सहम सहम कर 

मैं ख़ुद हूँ डरा,

और चकित हूँ 

मुझसे मिलने 

क्यों आया कोई 

फ़िर व्यथा 

अपनी सुनाई 

मेरे बारे 

कुछ पूछा नहीं 

कई अरसे का बांध भरा था 

आज अचानक टूटा अभी 

कहने लगा 

अब मेरी सुनो 

धीरे चलता है 

वक्त संग मेरे 

बैठो मेरे पास, 

है समय बहुत 

सूरज जला कर चला गया 

मैं लाया हूँ 

लेप शीत का 

धरती थक कर, 

झुलस गई थी 

अब सोयेंगे 

बेफ़िक्र सभी

मैंने कहा 

आड़ में तुम्हारे, 

रहते हैं दुष्ट निशाचर

भूत पिशाच भी 

सुना छिपे हैं 

घोर अंधेरे में कहीं 

बोला वो 

मुस्कुरा कर 

जिसके कर्म, 

फल उसी को साजे 

करे कोई 

दोष मुझ पर क्यों दागे?

मन का मैल

रोशनी से कहाँ मिटा है 

अमानव, पिशाच 

तो हृदय में छिपा है 

मुझमें मासूम नींद है 

तो मुझमें निर्मम जुर्म भी

जो जैसा ढूँढता है 

अँधेरे में उसको मिलता वही 

मैं शून्य हूँ 

मेरा कुछ भी नहीं 

ना रंग, ना रोशनी है 

अंधेरा हूँ, मुझमें कोई अलग नहीं 

दिन रोशनी है 

सूरज से है वो बलवान  

रात अंधेरा है 

सब कुछ खोने में, उसकी पहचान 

आज आए हो मिलने 

थोड़ी देर सो कर जाना 

अगले दिन की दिनचर्या के नए

बीज बो कर जाना 

सो गया मैं, बेफिक्र 

रात की बात 

शायद ख़त्म हो गई थी 

कहना और भी था शायद 

पर ममता भरी रात

खामोश हो गई थी 

Published by Echoes of the soul

I am a dreamer I weave tales in my mind I am connected to you through these words And through this screen across the virtual world

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