कैसे पहचानोगे
जो ख़ुद ने छिपा रखा है
वो चेहरा अलग है जो
नज़रों ने बना रखा है
कई बार कोशिश की
नक़ाब उतार फेंक देने की
नक़ाब नज़रों ने
अलग सा पहना रखा है
जिस दिन अपना कवच निकाल,
नंगे बदन में, दुनिया से मिलूँगा
ख़ुद को दुनिया में
दुनिया को खुदको में पाऊँगा
फिर ना ज़रूरत होगी
किसी पहचान की
और ना कोई नक़ाब
चेहरे पे टिकेगा
हर चेहरा मेरा अक्स होगा
हर नज़र मेरी रोशनी होगी
बंद आँखों से
हर नज़ारा, साफ़ नज़र आयेगा
कैसे पहचानोगे
जो तुम्हारा अक्स है
वो चेहरा
जो सब में नज़र आता है
Published by Echoes of the soul
I am a dreamer
I weave tales in my mind
I am connected to you through these words
And through this screen across the virtual world
View more posts