
कौन सा बोझ
लिए चलते हैं
कंधों पे
कभी दिलों में
साथ चलता दरिया है
छलकता साफ़ पानी है
चलो थोड़ा रुक जाएँ
कुछ देर ही सही
वो सर पर रखा
जो भारी बोझ है
कुछ देर
उतार दें ज़मीन पर
फिर सोचा
किसने देखा है
इस दरिया में
चलो बहा दें
और फिर बैठें
कुछ देर किनारे पे
देखें उस मैल को
घुलते हुए, बहते हुए
और जब हो जाए
पानी फिर से साफ़
जब दिखे आसमान
नीला और खुला
तब लेंगे उड़ान
बादलों में
हवाओं में
नंगे पाओं
हो ऐसा एक झरना
जहां धो पाएं वो परतें
कुछ जो समय ने डाली
कुछ जो हम ने खुद ओढ़ ली
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