ज़ायक़ा शायद
वैसा ही होगा
जैसा चखा था
उन महकते ख़्वाबों में
बदन की ख़ुशबू
मन की महक
जुड़ से गए हैं
इन सिसकती साँसों में
असल और ख़्वाब
में फ़रक
थोड़ा धुंधला गया है
इन उलझे ख़यालों में
भूल गया हूँ
क्या सच है क्या ख़्वाब है
मगन हूँ में बस
उन साँचे एहसासों में
एक निवाला प्यार का
शिद्दत से चखा है
असल का तो पता नहीं
शायद वो भी ख़्वाब हो
Wah!!👏👏👏
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Thanks my friend
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बहुत खूब । Specially last four lines .❤️
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🙏🙏🙏
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