ड्रॉइंग रूम में सजी मूरत
जो किसी कारीगर की
नायाब कारीगरी थी
जिसे मजबूर हो कर
बेचा था उसने
आज वो मेरी है
धूल से लथपथ
अपने गले पर
अपनी क़ीमत लटकाए
जो कभी दुकान के कोने में
बेज़ुबान पड़ी थी
आज वो मेरी है
मोल देकर ख़रीदा है
मालिक बदल गया है
ना पूछा इस बेज़ुबान से
ना ज़रूरत समझी
किसी और की ज़िंदगी का हिस्सा थी
आज वो मेरी है
मेरा उस पर हक़ है
किसी और का नहीं
ना रचने वाले का,
ना रखने वाले का
ये मेरी सोच है, मेरा यक़ीन है
ये ग़लत फ़हमी उन सब की थी
आज वो मेरी है