
कुछ लिख देता हूं
यूं ही
अपने सच्चे झूठे अल्फ़ाज़
बस यूं ही
तुम्हें पसंद आया
तो लगा
शायद
अच्छा होगा
तुमने माना
तो लगा
शायद
सच्चा होगा
किसको फर्क
किसको परवाह
क्या सच
और किसका सच
पर ये तो सच है
की एक एहसास
जो मेरा था
अब हमारा है
इसी सच पर
यकीन है
इसी भरोसे पर
ये नई मोहिम है
कुछ और लिख रहा हूं
ये सोच कर
तुम्हे पसंद आएगा
बस यूं ही शायद