
हो रहे तैयार
कपड़े
इंसान पहनने को
धूप में
सुबह
फिर से जीने को
हैं तैयार
आज कौन होगा
कैसा होगा
हर के नाप का एक है
एक घर है
एक इंसान है
जिसकी ज़िंदगी को जीने
हैं तैयार
उसकी महक
उसकी गंध
अपने में पिरोए
कभी उसके
जाने के बाद
महकने को
हैं तैयार
कभी नया
कभी पुराना
उस मौक़े के लिए
या किसी की याद
हर लम्हे
को लिए
हैं तैयार
आस्तीन में
छिपाये आंसू
ख़ुशी के
दुख के
वो सारी धड़कने
हाँ सब ओढ़े हुए
है तैयार
आज जल्दी उठे हैं
सुबह
धूप में
कुछ छिपाने
कुछ सजाने
ज़िंदगी का मज़ा लेने
हैं तैयार
Wah bhai👌👏👏
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