
घास के पत्तों को
कुचले जाने की आदत है
मेरी खवाइशों की भी कुछ
कुछ ऐसी ही आदत है
औस की बूँदों ने
हर बार सम्भाला है
ख़्वाहिशों की मौत को
कई बार टाला है
ज़मीन से जुड़ा हूँ
मैंने कहाँ जाना है
कुचलते कदम गुज़ार जाएँगे
मेरा तो यहीं ठिकाना है
किसकी जुस्तजू है
किसकी आरज़ू है
यहाँ क्या ख़त्म है
कहाँ कुछ शुरू है
Bahut hi umda panktiyan hain🥰🥰
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