सफर का नशा

मदहोश नशे में,
मदमस्त चल पडे़ थे
जुनून का नशा था,
हसीन ख्वाब लिए चल पड़े थे

काम का बोझ तो गहरा था
दिन-रात का फर्क भी खो चुका था
पर एक सुरूर सा आ रहा था
एक मस्ती का मंज़र था

फिर एक दिन, अफसोस
अपनी मंज़िल से टकरा गए
खुशी की उम्मीद थी
पर इस ठहाराव से मायूस हो गए

मंज़िल तो आ गयी थी
पर सफर से दिल भरा ना था
मंज़िल तो पा ली थी
पर सफर का मज़ा कुछ और ही था

एक पल के लिए
रुक गए थे
मेरे साथ शायद
ये पल भी रुक गया था

अगली मंज़िल की तलाश में, फिर एक बार
निकल पड़े हैं
एक और ख्वाब में
ज़िन्दगी को पाने,

फिर एक बार… निकल पड़े हैं

Published by Echoes of the soul

I am a dreamer I weave tales in my mind I am connected to you through these words through this screen across the virtual world I and my tales within

4 thoughts on “सफर का नशा

    1. Thanks Arti. और किसको पता कौनसी अपनी मंज़िल है. और आज जिससे टकराएँ हैं, वो आखरी मंज़िल भी नहीं

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