मदहोश नशे में,
मदमस्त चल पडे़ थे
जुनून का नशा था,
हसीन ख्वाब लिए चल पड़े थे
काम का बोझ तो गहरा था
दिन-रात का फर्क भी खो चुका था
पर एक सुरूर सा आ रहा था
एक मस्ती का मंज़र था
फिर एक दिन, अफसोस
अपनी मंज़िल से टकरा गए
खुशी की उम्मीद थी
पर इस ठहाराव से मायूस हो गए
मंज़िल तो आ गयी थी
पर सफर से दिल भरा ना था
मंज़िल तो पा ली थी
पर सफर का मज़ा कुछ और ही था
एक पल के लिए
रुक गए थे
मेरे साथ शायद
ये पल भी रुक गया था
अगली मंज़िल की तलाश में, फिर एक बार
निकल पड़े हैं
एक और ख्वाब में
ज़िन्दगी को पाने,
फिर एक बार… निकल पड़े हैं
Wah!!
LAJAWAB!!
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Super
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Wah Col Sahab.. Subhanallah… sahi kaha Manzil pane se achchha us tak ka safar lagta hai..
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Thanks Arti. और किसको पता कौनसी अपनी मंज़िल है. और आज जिससे टकराएँ हैं, वो आखरी मंज़िल भी नहीं
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