कुछ दिनों से
मैं ये सोच रहा था
एक कहानी
कह दूँ
फिर कल,
हुआ कुछ ऐसा अलग,
सोचा नहीं
कह डाला
खुशी जो अंदर थी
अब बाहर भी है
और हैरत की बात तो ये है
कि मैं उनके बीच में नहीं
किसी और का मैं
आज मोहताज नहीं
किसी और का मुझे
इन्तज़ार भी नहीं
मैं मैं हूँ
मेरी कोई और
पहचान नहीं